क्या राष्ट्रपिता गांधी के हत्यारे गोडसे के समर्थक अब देश की सबसे बड़ी पंचायत में बैठेंगे?

क्या राष्ट्रपिता गांधी के हत्यारे गोडसे के समर्थक अब देश की सबसे बड़ी पंचायत में बैठेंगे?

रजत मौर्य 

23मई को लोकसभा के नतीजे आए। नतीजों में बीजेपी को देश की जनता ने प्रचंड बहुमत दिया. चुनावों में बीजेपी के कई दिग्गज नेताओं ने बड़ी जीत हासिल की। इसमें खुद देश के प्रधानमंत्री मोदी शामिल हैं, जिन्होंने वाराणसी सीट से चुनाव लड़ा था। पर यहां सवाल ये है कि क्या बीजेपी के साथ अब गोडसे के विचारक भी संसद में बैठेंगे?

ऐेसा इसलिए क्योंकि भोपाल से बीजेपी की विजयी उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने कांग्रेस के कद्दावर नेता दिग्विजय सिंह के सामने एक बड़ी जीत हासिल की है। यहां पर देश की जनता का ये सोचना बेहद जरूरी हो जाता है कि क्या साध्वी प्रज्ञा संसद जाने के लायक हैं।

साध्वी प्रज्ञा ने चुनाव प्रचार के दौरान एक बयान दिया था जिसे पार्टी लाइन के खिलाफ बताया गया था। साध्वी ने कहा था कि ‘गोडसे राष्ट्रभक्त थे, हैं और रहेंगे’. साध्वी के इस बयान के बाद उनकी बहुत निंदा की गई. बीजेपी ने भी साध्वी के इस बयान से किनारा कर लिया और समाजिक रूप से माफी मांगने को कहा. जिसके बाद साध्वी ने अपने शब्दों के अनुसार ट्वीट कर जैसे तैसे माफी मांग ली।

पर क्या ये माफी काफी थी ? क्या साध्वी प्रज्ञा ने वही नहीं कहा जो वो सुना करती हैं। मैं यहां ये इसलिए कह रहा हूं क्योंकि बीजेपी, आरएसएस में हमेशा से कुछ गुट ऐसे रहे हैं, जिन्होंने गोडसे के समर्थन में और गांधी जी की हत्या को जायज ठहराने के लिए ऐसे बयान दिए हैं। तो क्या अब इतनी बड़ी गलती की सजा सिर्फ माफी है ?

यहां पर उदाहरण के तौर पर हिंदू महासभा को ले सकते हैं जिन्होंने इसी साल महात्मा गांधी के निधन के दिन महात्मा गांधी की प्रतिमा बना कर गोली चलाई और इसका वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर डाला गया।

साथ ही एमपी से भी ऐसी ही एक खबर आई थी। जहां गोडसे का मंदिर बनाया गया था। हाल ही में कुछ दिन पहले भी हिंदु महासभा के कार्यकर्ताओं ने गोडसे की जन्मदिवस पर हनुमान के मंदिर में गोडसे की पूजा की थी।

इसमें एक बात और गौर करने की ये है कि प्रधानसेवक से जब इस बारे में सवाल किया गया कि साध्वी के बयान पर वो क्या एक्शन लेंगे, तो उनका सीधा कहना था कि वो मन से साध्वी को कभी माफ नहीं कर पाएंगे। पर क्या इतना कह देना काफी था?

आपको बता दें कि मालेगांव ब्लास्ट में साध्वी प्रज्ञा अभी भी मुख्य आरोपी हैं, जब बीजेपी की तरफ से उन्हें टिकट दिया गया तो इस बात की काफी आलोचना की गई थी, लेकिन प्रधानमंत्री ने खुद साध्वी की उम्मीदवारी का समर्थन किया था। साथ ही ये भी कहा था कि भगवा आतंकवाद कहने वालों के खिलाफ ये बीजेपी का सत्यागृह है। (सत्यागृह भी महात्मा गांधी की सकारात्मक सोच का परिणाम रहा है)

यहां पर एक सवाल ये भी उठता है कि अगर साध्वी प्रज्ञा का ये बयान चुनावों के बाद आता, तो क्या पार्टी या मोदी खुद इसकी निंदा करते? क्योंकि पीएम ने खुद पहला कदम बढ़ाते हुए बयान पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी। तो क्या पीएम साध्वी के इस बयान से सहमत थे?

बीजेपी को चुनावों में प्रचंड बहुमत मिला है और पार्टी अपनी सरकार चलाने में पूर्ण रूप से सक्षम है, तो फिर साध्वी प्रज्ञा बीजेपी की ऐसी कोनसी जरूरत है जो उनका संसद जाना जरूरी है। देश के राष्ट्रपिता के हत्यारे को देशभक्त बताना किसी भी रूप में जायज नहीं है।

प्रधानमंत्री मोदी खुद महात्मा गांधी के विचारों का नेता खुद को बताते आए हैं। तो अब पीएम को कौन सी ऐसी बात है जो साध्वी पर किसी तरह की कार्रवाई करने से रोक रही है?

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